गायत्री मंत्र के रहस्य

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गायत्री मंत्र के रहस्य :  

आज गुप्त गुरु गायत्री विद्या की चर्चा अवश्य करते है । यह गायत्री मन्त्र से अलग है । यह अंतिम गुरु मन्त्र, मुक्ति मन्त्र है । अति गोपनीय होने के कारण इसे विशेष परमशिष्य को ,सन्यासी को , ब्रह्मनिष्ठ को ब्रह्मचारी को , जिन्हें हर मन्त्र में ॐ लगाने का गुरु से अधिकार मिल चुका हो, जो शैव सम्प्रदाय से हो,जिन्होंने 1100 स्वयम्भू शिवालयों, 12 ज्योतिलिंगो, 1100 धामों के ,108 तीर्थो  (नदियों) के दर्शन किये हो ।
नमः शिवाय या गुरु मन्त्र के 5 पुनश्चरण किये हो, सद्गुरु,ओर शिव भक्त हो, उन्हें ही गुप्त गायत्री विद्या मन्त्र बताने का अधिकार है । कुछ रहस्य ओर भी जिन्हें लिखा नही जा सकता । इस मन्त्र के जाप से वाणी सिद्ध,शुध्द,होती है । मृत संजीवनी विद्या की शक्ति प्राप्त होती है । अथाह धन के कारक,दाता,सद्गुरु संवृद्धि ऐश्वर्य दायक ग्रह श्री शुक्राचार्य को यह विद्या भगवान शिव से मिली थी । इन्होनें आगे अपने परम् शिष्य भगवान श्री गणेश ओर ज्ञान दाता शिवरूप श्री राहु को दी थी । स्कन्दः पुराण के चौथे खंड एवं ग्यारहवें खंड में भी उल्लेख है सारा संसार एक दूसरे से जुड़ा या बंधा हुआ है अथवा ये माने कि एक के ऊपर एक अंकुश है,कंट्रोल है । हमारा तन ही एक दूसरे के अंकुश में है ।
 जैसे-
शरीर पर इंद्रियों का कंट्रोल है,
इंद्रियों पर मन का
मन पर बुद्धि का
बुद्धि पर चित्त का
चित्त पर आत्मा का
आत्मा पर अहंकार का
अहंकार पर महत्तव का
महत्तव पर श्याम विवर
अर्थात ब्लैक हॉल पर जहां सब कुछ काला और महा अंधकार है ।)
ब्लैक होल पर काली का
काली पर सूर्य का
सूर्य पर राहु (शिव) का
शिव पर शेषनाग का
शेषनाग पर प्रकृति का
प्रकृति पर मन्त्रों का
मंत्रों पर साधकों का
साधकों पर सद्गुरुओं का
सद्गुरु पर परमात्मा का
परमात्मा पर शक्ति का
शक्ति पर भक्ति का
भक्ति पर ॐ का
और ॐ पर गायत्री का अंकुश है ।
ॐ और गायत्री मन्त्र व छन्द के बिना सृष्टि के  सब ग्रंथ, वेद-शास्त्र पूजा-विधान, कर्मकाण्ड व्यर्थ हो जाते है ।
सूर्योउपनिषद में आया है कि गायत्री प्रकृति
तथा ॐ ईश्वर है ।
 गायत्री मन्त्र तथा गुप्त गायत्री विद्या मन्त्रकेवल पुरुष ही कर सकते हैं । ऐसा सद्गुरुओं का निर्देश है । गायत्री के जाप से अंधकार मिट जाता है
 महर्षियों ने प्रार्थना की की-
 असतो मा सद्गमय तमसो मा ज्योतिर्गमय मृत्युर्मा अमृतम गमय
II ॐ शांति - शांति: - शान्तिं: ll 
 हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलें । मृत्यु से अमृत की ओर । गायत्री के जाप से निश्चित ही त्रिविध दु:खों का निवारण हो जाता है । हमारे त्रिशूल, त्रिदोष,त्रिपाश, त्रिकाल दुख, तथा संसार के समस्त दु:खों के कारण तीन हैं—
(१) अज्ञान
(२) अशक्ति
(३) अभाव।
जो इन तीनों कारणों को जिस सीमा तक अपने से दूर करने में समर्थ होगा, वह उतना ही सुखी बन  सकेगा।

 गायत्री कामधेनु है  
पुराणों में उल्लेख है कि सुरलोक में देवताओं के पास कामधेनु गौ है, वह अमृतोपम दूध देती है जिसे पीकर
देवता लोग सदा सन्तुष्ट, प्रसन्न तथा सुसम्पन्न रहते हैं।
इस गौ में यह विशेषता है कि उसके समीप कोई अपनी कुछ कामना लेकर आता है, तो उसकी इच्छा तुरन्त पूरी हो जाती है। कल्पवृक्ष के समान कामधेनु गौ भी अपने निकट पहुँचने वालों की मनोकामना पूरी करती है।
              यह कामधेनु गौ गायत्री ही है 
इस महाशक्ति की जो देवता, दिव्य स्वभाव वाला मनुष्य उपासना करता है । वह माता के स्तनों के समान आध्यात्मिक दुग्ध धारा का पान करता है, उसे किसी प्रकार कोई कष्ट नहीं रहता। आत्मा स्वत: आनन्द स्वरूप है। आनन्द मग्न रहना उसका प्रमुख गुण है। दु:खों के हटते और मिटते ही वह अपने मूल स्वरूप में पहुँच जाता है। देवता स्वर्ग में सदा आनन्दित रहते हैं। मनुष्य भी भूलोक में उसी प्रकार आनन्दित रह सकता है, यदि उसके कष्टों का निवारण हो जाए। गायत्री रूपी कामधेनु मनुष्य के सभी कष्टों का समाधान कर देती है। जो उसकी पूजा, आराधना, अभिभावना व उपासना करता है, वह प्रतिक्षण समस्त अज्ञानों, अशक्तियों और अभावों के कारण उत्पन्न होने वाले कष्टों से छुटकारा पाकर मनोवाँछित फल प्राप्त करता है।
वेदों में आया है-

 गायत्री सद्बुद्धिदायक मन्त्र है। " 
वह साधक के मन को, अन्तःकरण को, मस्तिष्क को, विचारों को सन्मार्ग की ओर प्रेरित करता है।सत् तत्त्व की वृद्धि करना उसका प्रधान कार्य है। साधक जब इस महामन्त्र के अर्थ पर विचार करता है, तो वह समझ जाता है कि संसार की सर्वोपरि समृद्धि और जीवन की सबसे बड़ी सफलता ‘सद्बुद्धि’ को प्राप्त करना है।
यह मान्यता सुदृढ़ होने पर उसकी इच्छाशक्ति इसी तत्त्व को प्राप्त करने के लिए लालायित होती है।
यह ‘आकांक्षा’ मन:लोक में एक प्रकार का चुम्बकत्व (मैग्नेटिक शक्ति) उत्पन्न करती है।
उस चुम्बक की आकर्षण शक्ति से निखिल आकाश के ईथर तत्त्व
   (इसकी गति सूर्य से भी एक लाख गुना है । दुनिया इस मंत्र के बारे में बहुत अनभिज्ञ है । )